कहाँ भारत की नारी?

भारत में नारी को देवी का दर्जा दिया गया है मगर वर्तमान में यह बातें सिर्फ किताबों तक सीमित रह गयी हैं। आये दिन महिलाओं पर अत्याचार की घटनायें होना आम बात हो गयी है। दिल्ली में सामूहिक बलात्कार की शिकार हुयी निर्भया के गुनहगारों को गत आठ वर्षों बाद भी अभी तक फांसी बचाव पक्ष की पेंतरेबाज़ी में अटकी रही । जबकि निर्भया आंदोलन का फायदा उठाकर नेता बने लोग सत्ता का लाभ उठा रहे हैं। कानूनी पेचीदगियों का लाभ उठाकर निर्भया के गुनहगारों को फांसी देने की तिथि बार-बार आगे खिसकती  रही । इससे अपराधियों के हौसले बढ़ते हैं। संसद में महिलाओं की संख्या में बढ़ोत्तरी होना एक शुभ संकेत है। मगर आज भी संसद में महिलाओं के आरक्षण की बात पर सभी राजनीतिक दल पीछे खिसकने लगते हैं। कोई भी पार्टी महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाना नहीं चाहती है। कई राजनीतिक दलों की मुखिया महिलायें हैं मगर महिलाओं को आरक्षण दिलवाने की बात पर वो भी चुप्पी साधकर सरकार की हां में हां मिलाने लगती हैं। इसी कारण संसद में महिलाओं को आरक्षण देने का मामला वर्षों से लम्बित है।पंचायती राज व स्वायत्त शासन संस्थानों में महिलाओं को कुछ आरक्षण देकर सभी राजनीतिक दल व प्रदेशों की सरकारें अपना कर्तव्य पूरा कर लेती हैं।


देश में महिलायें हर क्षेत्र में पुरूषों के कंधे से कंधा मिला कर काम कर रही हैं। गत वर्षों में तो महिला खिलााडियों ने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पुरूषों से अच्छा प्रदर्शन कर देश का दुनिया भर में मान बढ़ाया है। इसके उपरान्त भी महिलाओं को समानता के लिये संघर्ष करना पड़ता है जो देश व समाज के लिये अच्छी बात नहीं है। महिलाओं के हित में कुछ अच्छी व कुछ बुरी खबरें आ रही हैं। अच्छी खबर यह है कि संसद में महिला सांसदों की संख्या बढ़ी है। वहीं उच्चतम न्यायलय ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का रास्ता साफ कर दिया है। अपने एक फैसले में देश की शीर्ष अदालत ने महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सेना में महिला अधिकारियों की नियुक्ति विकासवादी प्रक्रिया है। इसी दौरान महिलाओं को शर्मसार करने वाली कुछ बातें भी सामने आई हैं।


गुजरात के सूरत में महिला प्रशिक्षु क्लर्कों के साथ अभद्रता की घटना सामने आयी है। जिससे सभ्य माने जाने वाले समाज का सिर शर्म से झुक गया है। सूरत नगर निगम में प्रशिक्षु क्लर्कों की शारीरिक जांच के नाम पर उन्हें निर्वस्त्र कर घंटों कतार में खड़ा रहने के लिए मजबूर किया गया। इतना ही नहीं उस दौरान ना तो उनकी निजता का ख्याल रखा गया और ना ही उनके साथ संवेदनशीलता दिखाई गई। उनसे आपत्तिजनक सवाल किए गए। प्रशिक्षु क्लर्कों को मेडिकल टेस्ट के लिए अस्पताल के प्रसूति विभाग में ले जाया गया। जहां उन्हें १०-१० के समूह में बांट कर सारे कपड़े उतारने को कहा गया। जिस कमरे में उन्हें निर्वस्त्र खड़ा करवाया गया उस कमरे का दरवाजा तक ठीक से बंद नहीं किया गया था। वहां उनकी प्राइवेसी तक का ख्याल नहीं रखा गया। जांच के दौरान महिला चिकित्सकों ने अविवाहित महिलाओं की भी गर्भावस्था से जुड़ी जांच की और उनसे आपत्तिजनक सवाल पूछे। जिससे उन्हें असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। घंटों तक उन्हें बिना कपड़ो के खड़े रहने के लिए मजबूर किया गया।उससे पूर्व गुजरात में भुज शहर के श्री सहजानंद गल्र्स इंस्टीट्यूट से शर्मनाक मामला सामने आया था। वहां हॉस्टल में ६८ लड़कियों के इनर वियर उतरवाए गए। कथित तौर पर ऐसा इसलिए किया गया जिससे  यह पता लगाया जा सके कि वे मासिक धर्म से तो नहीं हैं। लड़कियों के इनर वियर उतरवाने का यह मामला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनने से सरकार की नींद खुली व मामले को दबाने के लिये जांच कमेटी बना दी गयी है। जो अपनी जांच रिपोर्ट देने में महीनों लगा देगी तब तक लोग उस घटना को भुला चुके होंगे।  


राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराधों में लगातार तीसरे साल भी वृद्धि देखने को मिली है। इसके मुताबिक २०१५ में महिलाओं के खिलाफ अपराध के ३ लाख २९ हजार २४३ मामले दर्ज किए गए थे। २०१६ में ३ लाख ३८ हजार ९५४ मामले दर्ज किए गए थे। जबकि २०१७ में ३ लाख ५९ हजार ८४९ मामले दर्ज किए गए। आंकड़ों के मुताबिक २०१७ में भारत में ३२,५५९ बलात्कार के मामले रिपोर्ट हुए थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, अधिकतम मामले उत्तर प्रदेश में ५६ हजार ११ में दर्ज किए गए। उसके बाद महाराष्ट्र में ३१ हजार ९७९ मामले दर्ज किए गए। वहीं पश्चिम बंगाल में ३० हजार ९९२, मध्य प्रदेश में २९ हजार ७७८, राजस्थान में २५ हजार ९९३ और असम में २३ हजार ८२ मामले दर्ज किए गए। इन अपराधों में हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाना, एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ कू्ररता और अपहरण आदि शामिल है। 
- अशोक भाटिया


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