चरमराता स्वास्थ्य ढांचा


कोरोना संक्रमण की चपेट में आए लोगों के उपचार में हो रही घोर लापरवाही का स्वत: संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जैसे कठोर शब्दों में अपना क्षोभ व्यक्त किया, उस पर शायद ही किसी को हैरानी हो, क्योंकि हालात वास्तव में बहुत खराब दिख रहे हैं। ऐसा लगता है कि सरकारी स्वास्थ्य ढांचा चरमराकर टूटने ही वाला है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकारी अस्पतालों का सबसे बुरा हाल दिल्ली और मुंबई में देखने को मिल रहा है। अब यदि देश की प्रशासनिक और वित्तीय राजधानी में स्वास्थ्य ढांचे का इतना बुरा हाल है तो फिर यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि अन्य शहरों में हालात कितने दयनीय होंगे। दुर्भाग्य से अनुमान लगाने की जरूरत नहीं, क्योंकि देश के अन्य शहरों के सरकारी अस्पतालों के खराब और डरावने हालात को बयान करने वाली खबरों का सिलसिला थम नहीं रहा है। ऐसी खबरें देश की बदनामी का कारण भी बन रही हैं।
 समझना कठिन है कि जब इसका अंदेशा मार्च माह में ही उभर आया था कि लाखों लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और उनके उपचार के लिए अस्पतालों में बड़ी संख्या में बेड के साथ अन्य संसाधन भी चाहिए होंगे, तब फिर राज्य सरकारें युद्धस्तर पर जुटकर पर्याप्त व्यवस्था क्यों नहीं कर सकीं? शायद समुचित व्यवस्था बनाने से अधिक ध्यान बड़े-बड़े दावे करने में दिया गया और इसीलिए आज यह देखने-सुनने को मिल रहा कि कहीं कोरोना मरीजों को भर्ती करने से इन्कार किया जा रहा है, कहीं भर्ती के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जा रहा है और कहीं-कहीं तो उनके शवों को कचरे वाले वाहनों में ले जाया जा रहा है। यह अकल्पनीय भी है और अक्षम्य भी। दिल्ली में जिस तरह यह सामने आया कि कोरोना मरीजों का पता लगाने के लिए होने वाले टेस्ट बढ़ाने के बजाय कम कर दिए गए, उससे तो यही प्रकट होता है कि जान-बूझकर मरीजों की संख्या कम दिखाने की चाल चली गई। यह केवल छल ही नहीं, लोगों के स्वास्थ्य से किया जाने वाला खुला खिलवाड़ भी है। आखिर ऐसे लापरवाही भरे रवैये से कोरोना के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई को कैसे जीता जा सकता है?
 चूंकि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है इसलिए केंद्र सरकार निर्देश ही दे सकती है, लेकिन सेहत के समक्ष संकट की स्थिति में उसे चाहिए कि वह अपनी अंतर मंत्रालयी टीमों को उन राज्यों में फिर भेजे जहां कोरोना मरीजों के उपचार में भयंकर लापरवाही देखने को मिल रही है। यह समझने की सख्त जरूरत है कि सरकारी स्वास्थ्य ढांचे को सुधारे और उसे जवाबदेह बनाए बगैर बात बनने वाली नहीं है।


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