बस 15 साल और। जाग जाओ।

 बस 15 साल और। जाग जाओ।



पूछेगा इतिहास तुम्ही से दोषी कौन।

न उत्तर दे पाओगे होकर के मौन।।

पुनः पुनः श्री कृष्ण ने आकर।

बार-बार था समझाया।।

श्री कृष्ण गीता में लिखकर।

धर्म अधर्म था समझाया।।

किंतु तुम बन गए दुर्योधन।

नहीं समझ पाय उनको।।

धर्म अधर्म का भेद न समझे।

बार बार समझाया जिनको।।

आज तुम्हारी यह हालत जो।

कौन बना कारण इसका।।

महाकारण इसका जो भी हो।

मौन रहे जो युद्ध में उनका।।

महाभारत तो युगो युगो से।

होती आई न तुम समझे।।

लिखकर के इतिहास बताया।

फिर भी कुछ न तुम समझे।।

अब पछताने से क्या होगा।

भली-भांति समझो इसको।।

दोष किसी को दे डालो पर।

देना चाहो अब जिसको।।

किंतु तुम युद्ध हार गए हो।

तिल तिल कर मरना होगा।।

सीकुलर तेरा धर्म है मिटता।

यह सब तो सहना होगा।।

दास विपुल की यह वाणी।

नहीं समझना चाहा तुमने।

विगत दिनों की बात हुई अब।

व्यर्थ बात छेड़ी है तुमने।।

अब अत्याचारों को सहना।

तेरा ही है भाग्य बना।।

हिंदू तुम को मिटाना होगा।

यह तेरा दुर्भाग्य घना।।

यह जो लिखा दूर नहीं अब।

अभी जागो मेरे भाई।।

विपुल जगाता बार-बार है।

द्वार खड़े तेरे आतताई।।

आओ हम सब मिल जाएं अब।

पुनः सनातन दूत बने।।

जो हमको हैं बहलाते।

उनके फिर कालदूत बने।।

- विपुल लखनवी की संवेदना

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